अतिरिक्त >> रूद्राक्ष रहस्य रूद्राक्ष रहस्यदीनानाथ झा
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शिव अश्रु रुद्राक्ष अर्थात् भगवान शिव के नेत्रों से अश्रु (आँसू) के रूप में निकलकर प्रकट होने वाला रुद्राक्ष न सिर्फ एक वनफल की गुठली ही है, वरन् उसके अन्दर अनेक दिव्य शक्तियाँ भी समाहित हैं, जिनके प्रभाव से मानव बाधाओं से मुक्त होकर शिवधाम को प्राप्त करता है...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
प्राक्कथन
इस पृथ्वी पर अनेक ऐसी-ऐसी दुर्लभ वस्तुएं हैं, जो न सिर्फ प्राणीमात्र को
शारीरिक सुख ही प्रदान करती हैं, बल्कि उनमें भौतिक एवं आध्यात्मिक गुण भी
विद्यमान होते हैं। जिस प्रकार एक हीरा की परख मात्र जौहरी कर सकता है,
उसी प्रकार प्रकृति एवं ईश्वर द्वारा प्रदत्त अमूल्य दुर्लभ वस्तुओं की
परख मात्र वही कर सकते हैं, जिन्हें उनके सम्बन्ध में सभ्यक् जानकारी होती
है। जानकारियों के अभाव में ‘हीरा’ भी एक काँच का
टुकड़ा ही
होता है, जबकि वह सभी धातुओं से कीमती एवं अनेक गुणों से सम्पन्न होता है।
‘शिव अक्षु रुद्राक्ष’ अर्थात् भगवान शिव के नेत्रों से अश्रु (आँसू) के रूप में निकलकर इस धारा पर कल्याणकारी भावनाओं के लिए प्रकट होने वाला रुद्राक्ष न सिर्फ एक वनफल की गुठली ही है, वरन् उसके अन्दर असीम, साधारण अनेक दिव्य शक्तियाँ भी समाहित हैं, जिनके प्रभाव से मानव हर प्रकार की बाधाओं से मुक्त होकर शिवधाम को प्राप्त करता है।
रुद्राक्ष का धार्मिक महत्त्व तो है ही परन्तु रुद्राक्ष पर हुए अनेक शोधकार्यों के परिणाम स्वरूप इसकी उपयोगिता भौतिक वादी देश अमेरिका, यूरोप, इण्डोनेशिया, जावा, सुमात्रा, फिलीपिन्स आदि में भी इसकी माँग बढ़ गई है। अनेक बीमारियों को दूर करने के गुणों के कारण भी सभी स्तर के लोग इसे धारण करने लगे हैं।
प्रस्तुत पुस्कत में एकमुखी रुद्राक्ष से लेकर इक्कीसमुखी रुद्राक्ष तक का सम्पूर्ण विवरण प्रस्तुत करने का मैंने प्रयास किया है। साथ ही साथ संबन्धित रुद्राक्ष के स्वरूप का पूर्ण परिचय, धार्मिक महत्त्व, औषधीय महत्त्व धारणीय मंत्र तांत्रिक प्रयोग एवं सम्बन्धित यंत्र का चित्र सहित वर्णन एवं स्त्रोत्र भी प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। कुछ रुद्राक्ष ऐसे होते हैं, जिनका मिलना अत्यंत्न ही दुर्लभ होता है। अगर वे मिल जाते हैं, तो उनकी असलियत पर संदिग्धता ही बनी रहती है। सम्बन्धित यंत्रों के धारण मात्र से ही उस रुद्राक्ष के सभी फल प्राप्त होते है।
इस पुस्तक की रचना का आधार शिवतत्त्व रत्नाकार, शिवपुराण, पदमपुराण, स्कन्द पुराण, रुद्राक्ष, बालोपनिषद, रुद्रपुराण, भीमदभागवत, देवी भागवत, ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, काठक संहिता, कात्यायनी तंत्र, मुण्डकोपनिषद, भगवत कर्मपुराण पारस्कर ग्रहसूत्र, विष्णुधर्म सूत्र यंत्र-तन्त्र विज्ञान पदम पुराण ब्रह्मपुराण, लिंगपुराण वाराह पुराण, विष्णुधर्मोंत्तर पुराण, समरांगण सूत्रधार, रूपमण्डल चतुर्वर्ग चिन्तामणि प्रतिभा, विज्ञान, याज्ञवलक्य स्मृति नित्याचार प्रदीप वैदिक देवता कल्याण आदि अनेक ग्रन्थों पर आधारित है इन गन्थों से जहाँ से भी छोटा सा भी अंश रुद्राक्ष से सम्बन्धित मुझे प्राप्त हुआ। मैंने बेहिचक उसे ग्रहण किया एवं इस पुस्तक में संकलित किया ताकि रुद्राक्ष से सम्बन्धित तथ्यपरक जानकारियाँ अपने प्रभुद्ध पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर सकूँ।
इस पुस्तक में अनेक पुस्तकों से रुद्राक्ष से सम्बन्धित यंत्रों को ग्रहण करके संकलित करने का प्रयास किया गया हैं। वास्कर यंत्र अर्द्धनारीश्वर यंत्र, त्रिशक्ति यंत्र चतुर्मुखयंत्र कालाग्नि यंत्र, अनन्त यंत्र, विनायक यंत्र, अम्बा, विष्णु यंत्र, प्रभाकर यंत्र, समृद्धि यंत्र हनुमत यंत्र पाशुपत्य यंत्र महाकालेश्वर यंत्र विश्वकर्मायंत्र, अवनि यंत्र क्षीरशयनी यंत्र, ब्रह्म यंत्र, कुबेर यंत्र, युगल यंत्र सहित बाइस यंत्रों का भी सचित्र वर्णन किया गया है है। ताकि उन यंत्रों को धारण कर तत्सम्बन्धी लाभों को उठाया जा सके, यंत्रों के साथ ही सम्बन्धित देवी-दोवताओं की स्तुति भी देने का प्रयास किया गया है।
रुद्राक्ष परिचय रुद्राक्ष धारण विधान, साधना रीतियाँ, यंत्र सिद्धि की विधियाँ आदि देकर मैंने इस पुस्तक को उपयोगी बनाने का अथक प्रयास किया है। हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता’ के अनुरूप रुद्राक्ष का रहस्य भी अनन्त है। संपूर्ण तथ्यों को ग्रहण कर संकलित कर प्रस्तुत करना किसी मानव क्षमता से परे की बात ही है।
इस ‘अकिंचन’ द्वारा प्रस्तुत रुद्राक्ष से सम्बन्धित सभी तथ्यों पर बारीकी से ध्यान रखा गया है तथा किसी भी अतिशयोक्ति पूर्ण बातों से दिग्भ्रमित करने का प्रयास नहीं किया गया है, फिर भी मैं मानव ही हूँ और त्रुटियों का रह जाना भी संभव है। अतः विद्वतजनों से मेरी प्रार्थना है कि मेरी मानवीय त्रुटियों की ओर ध्यान दिलाकर (उन त्रुटियों को आगामी संस्करणों में संशोधित कर सकूँ) मुझे कृतार्थ अवश्य किया जाएगा।
इस पुस्तक के लेखन कार्य में मेरी अर्द्धागिनी पूनम दिनकर, पुत्र आनन्द कुमार अनन्त, परमानन्द परम एवं पुत्री आरती रानी ने भी अत्यधिक सहयोग प्रदान किया है अतः मैं उनका आभार प्रकट किए हुए नहीं रह सकता।
आपके सुझावों, विचारों, आलोचनाओं एवं प्रेरणाओं से पूर्ण पत्रों का मुझे सदैव इंतजार रहेगा एवं वे मुझे शिरोधार्य होंगे। आशा है इस पुस्तक से हमारा समाज लाभान्वित अवश्य होगा। तभी मेरा प्रयास सार्थक सिद्ध होगा।
‘शिव अक्षु रुद्राक्ष’ अर्थात् भगवान शिव के नेत्रों से अश्रु (आँसू) के रूप में निकलकर इस धारा पर कल्याणकारी भावनाओं के लिए प्रकट होने वाला रुद्राक्ष न सिर्फ एक वनफल की गुठली ही है, वरन् उसके अन्दर असीम, साधारण अनेक दिव्य शक्तियाँ भी समाहित हैं, जिनके प्रभाव से मानव हर प्रकार की बाधाओं से मुक्त होकर शिवधाम को प्राप्त करता है।
रुद्राक्ष का धार्मिक महत्त्व तो है ही परन्तु रुद्राक्ष पर हुए अनेक शोधकार्यों के परिणाम स्वरूप इसकी उपयोगिता भौतिक वादी देश अमेरिका, यूरोप, इण्डोनेशिया, जावा, सुमात्रा, फिलीपिन्स आदि में भी इसकी माँग बढ़ गई है। अनेक बीमारियों को दूर करने के गुणों के कारण भी सभी स्तर के लोग इसे धारण करने लगे हैं।
प्रस्तुत पुस्कत में एकमुखी रुद्राक्ष से लेकर इक्कीसमुखी रुद्राक्ष तक का सम्पूर्ण विवरण प्रस्तुत करने का मैंने प्रयास किया है। साथ ही साथ संबन्धित रुद्राक्ष के स्वरूप का पूर्ण परिचय, धार्मिक महत्त्व, औषधीय महत्त्व धारणीय मंत्र तांत्रिक प्रयोग एवं सम्बन्धित यंत्र का चित्र सहित वर्णन एवं स्त्रोत्र भी प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। कुछ रुद्राक्ष ऐसे होते हैं, जिनका मिलना अत्यंत्न ही दुर्लभ होता है। अगर वे मिल जाते हैं, तो उनकी असलियत पर संदिग्धता ही बनी रहती है। सम्बन्धित यंत्रों के धारण मात्र से ही उस रुद्राक्ष के सभी फल प्राप्त होते है।
इस पुस्तक की रचना का आधार शिवतत्त्व रत्नाकार, शिवपुराण, पदमपुराण, स्कन्द पुराण, रुद्राक्ष, बालोपनिषद, रुद्रपुराण, भीमदभागवत, देवी भागवत, ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद, काठक संहिता, कात्यायनी तंत्र, मुण्डकोपनिषद, भगवत कर्मपुराण पारस्कर ग्रहसूत्र, विष्णुधर्म सूत्र यंत्र-तन्त्र विज्ञान पदम पुराण ब्रह्मपुराण, लिंगपुराण वाराह पुराण, विष्णुधर्मोंत्तर पुराण, समरांगण सूत्रधार, रूपमण्डल चतुर्वर्ग चिन्तामणि प्रतिभा, विज्ञान, याज्ञवलक्य स्मृति नित्याचार प्रदीप वैदिक देवता कल्याण आदि अनेक ग्रन्थों पर आधारित है इन गन्थों से जहाँ से भी छोटा सा भी अंश रुद्राक्ष से सम्बन्धित मुझे प्राप्त हुआ। मैंने बेहिचक उसे ग्रहण किया एवं इस पुस्तक में संकलित किया ताकि रुद्राक्ष से सम्बन्धित तथ्यपरक जानकारियाँ अपने प्रभुद्ध पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर सकूँ।
इस पुस्तक में अनेक पुस्तकों से रुद्राक्ष से सम्बन्धित यंत्रों को ग्रहण करके संकलित करने का प्रयास किया गया हैं। वास्कर यंत्र अर्द्धनारीश्वर यंत्र, त्रिशक्ति यंत्र चतुर्मुखयंत्र कालाग्नि यंत्र, अनन्त यंत्र, विनायक यंत्र, अम्बा, विष्णु यंत्र, प्रभाकर यंत्र, समृद्धि यंत्र हनुमत यंत्र पाशुपत्य यंत्र महाकालेश्वर यंत्र विश्वकर्मायंत्र, अवनि यंत्र क्षीरशयनी यंत्र, ब्रह्म यंत्र, कुबेर यंत्र, युगल यंत्र सहित बाइस यंत्रों का भी सचित्र वर्णन किया गया है है। ताकि उन यंत्रों को धारण कर तत्सम्बन्धी लाभों को उठाया जा सके, यंत्रों के साथ ही सम्बन्धित देवी-दोवताओं की स्तुति भी देने का प्रयास किया गया है।
रुद्राक्ष परिचय रुद्राक्ष धारण विधान, साधना रीतियाँ, यंत्र सिद्धि की विधियाँ आदि देकर मैंने इस पुस्तक को उपयोगी बनाने का अथक प्रयास किया है। हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता’ के अनुरूप रुद्राक्ष का रहस्य भी अनन्त है। संपूर्ण तथ्यों को ग्रहण कर संकलित कर प्रस्तुत करना किसी मानव क्षमता से परे की बात ही है।
इस ‘अकिंचन’ द्वारा प्रस्तुत रुद्राक्ष से सम्बन्धित सभी तथ्यों पर बारीकी से ध्यान रखा गया है तथा किसी भी अतिशयोक्ति पूर्ण बातों से दिग्भ्रमित करने का प्रयास नहीं किया गया है, फिर भी मैं मानव ही हूँ और त्रुटियों का रह जाना भी संभव है। अतः विद्वतजनों से मेरी प्रार्थना है कि मेरी मानवीय त्रुटियों की ओर ध्यान दिलाकर (उन त्रुटियों को आगामी संस्करणों में संशोधित कर सकूँ) मुझे कृतार्थ अवश्य किया जाएगा।
इस पुस्तक के लेखन कार्य में मेरी अर्द्धागिनी पूनम दिनकर, पुत्र आनन्द कुमार अनन्त, परमानन्द परम एवं पुत्री आरती रानी ने भी अत्यधिक सहयोग प्रदान किया है अतः मैं उनका आभार प्रकट किए हुए नहीं रह सकता।
आपके सुझावों, विचारों, आलोचनाओं एवं प्रेरणाओं से पूर्ण पत्रों का मुझे सदैव इंतजार रहेगा एवं वे मुझे शिरोधार्य होंगे। आशा है इस पुस्तक से हमारा समाज लाभान्वित अवश्य होगा। तभी मेरा प्रयास सार्थक सिद्ध होगा।
ड० दीनानाथ झा ‘दिनकर’
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रुद्राक्ष परिचय
रुद्राक्ष की उत्पत्ति
रुद्राक्ष भगवान शंकर की एक अमूल्य और अद्भुद देन है। यह शंकर जी की अतीव
प्रिय वस्तु है। इसके स्पर्श तथा इसके द्वारा जप करने से ही समस्त
पाप से निवृत्त हो जाते है और लौकिक-परलौकिक एवं भौतिक सुख की
प्राप्ति होती है।
रुद्राक्ष की उत्पत्ति के सम्बन्ध में ‘शिवपुराण’ में वर्णन है कि-‘सदाशिव ने लोकोपकार के लिए एक दिन माता पार्वती से कहा कि हे देवि ! मैंने पूर्व समय मन को स्थिर कर दिव्य सहस्त्र वर्ष पर्यन्त तपस्या की थी। उस समय मुझे कुछ भय- सा लगा जिससे मैंने अपने नेत्र खोल दिए। मेरे नेत्रों से आँसुओ की बिन्दुएं (बूँदे) गिरने लगीं। वहीं अश्रु पृथ्वी पर रुद्राक्ष-वृक्ष के रूप में उत्पन्न हो गये, जिन्हें बाद में रुद्राक्ष के रूप में जाना गया, इन वृक्षो में जो फल लगते है, उन्हें रुद्राक्ष का फल कहा जाता है। यह फल ‘नर मुण्ड’ का प्रतीक है। रुद्राक्ष का शाब्दिक अर्थ होता है रूद्र की आँख।’’
रुद्राक्ष के संबंध में शिव तत्त्व रत्नाकर, शिवपुराण, पदमपुराण, स्कन्दपुराण, रुद्राक्ष बालोपनिषद, रुद्रपुराण, लिंगपुराण, श्रीमदभागवत तथा देवी भागवत में विशद वर्णन देखने को मिलता है। सभी ग्रंथों में रुद्राक्ष को साक्षात महाकाल का परम प्रिय वस्तु माना है तथा उसके स्पर्श मात्र से परमधाम को प्राप्त करना बताया गया है।
रुद्राक्ष की उत्पत्ति जहाँ-जहाँ सदाशिव के नेत्रों में आँसू गिरे वहाँ-वहाँ माना गया है। गौड़ देश से लेकर मथुरा, अयोध्या, काशी, मलयाचल पर्वत आदि प्रदेशों में सदा शिव के अश्रु गिरने के फलस्वरूप रुद्राक्ष के फल उत्पन्न हो गये। तभी से रुद्राक्ष का माहात्म्य बढ़ गया और वेदों में इसकी महिमा पायी गयी।
शिवपुराण में रुद्राक्ष को बत्तीस अंगों में धारण करने के लिए बताया गया है। रुद्राक्ष अपने-अपने पूर्ण तंत्र-मंत्र और यंत्र हैं इसमें ऋद्धि-सिद्धि की वृद्धि निहित व लघुता से गरिमा की ओर ले जाता है। तुक्ष्य वस्तुओं के प्रति अनाशक्ति देता है। इसमें करने से अनेकानेक गम्भीर रोग दूर हो जाते है यह मनोवांछित कामनाओं को पूर्ण करता है।
रुद्राक्ष की उत्पत्ति के सम्बन्ध में ‘शिवपुराण’ में वर्णन है कि-‘सदाशिव ने लोकोपकार के लिए एक दिन माता पार्वती से कहा कि हे देवि ! मैंने पूर्व समय मन को स्थिर कर दिव्य सहस्त्र वर्ष पर्यन्त तपस्या की थी। उस समय मुझे कुछ भय- सा लगा जिससे मैंने अपने नेत्र खोल दिए। मेरे नेत्रों से आँसुओ की बिन्दुएं (बूँदे) गिरने लगीं। वहीं अश्रु पृथ्वी पर रुद्राक्ष-वृक्ष के रूप में उत्पन्न हो गये, जिन्हें बाद में रुद्राक्ष के रूप में जाना गया, इन वृक्षो में जो फल लगते है, उन्हें रुद्राक्ष का फल कहा जाता है। यह फल ‘नर मुण्ड’ का प्रतीक है। रुद्राक्ष का शाब्दिक अर्थ होता है रूद्र की आँख।’’
रुद्राक्ष के संबंध में शिव तत्त्व रत्नाकर, शिवपुराण, पदमपुराण, स्कन्दपुराण, रुद्राक्ष बालोपनिषद, रुद्रपुराण, लिंगपुराण, श्रीमदभागवत तथा देवी भागवत में विशद वर्णन देखने को मिलता है। सभी ग्रंथों में रुद्राक्ष को साक्षात महाकाल का परम प्रिय वस्तु माना है तथा उसके स्पर्श मात्र से परमधाम को प्राप्त करना बताया गया है।
रुद्राक्ष की उत्पत्ति जहाँ-जहाँ सदाशिव के नेत्रों में आँसू गिरे वहाँ-वहाँ माना गया है। गौड़ देश से लेकर मथुरा, अयोध्या, काशी, मलयाचल पर्वत आदि प्रदेशों में सदा शिव के अश्रु गिरने के फलस्वरूप रुद्राक्ष के फल उत्पन्न हो गये। तभी से रुद्राक्ष का माहात्म्य बढ़ गया और वेदों में इसकी महिमा पायी गयी।
शिवपुराण में रुद्राक्ष को बत्तीस अंगों में धारण करने के लिए बताया गया है। रुद्राक्ष अपने-अपने पूर्ण तंत्र-मंत्र और यंत्र हैं इसमें ऋद्धि-सिद्धि की वृद्धि निहित व लघुता से गरिमा की ओर ले जाता है। तुक्ष्य वस्तुओं के प्रति अनाशक्ति देता है। इसमें करने से अनेकानेक गम्भीर रोग दूर हो जाते है यह मनोवांछित कामनाओं को पूर्ण करता है।
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- प्राक्कथऩ
- रुद्राक्ष परिचय
- रुद्राक्ष धारण विधान
- साधना की रीतियाँ
- यंत्र-सिद्धि विधान
- एकमुखी रुद्राक्ष
- द्विमुखी रुद्राक्ष
- त्रिमुखी रुद्राक्ष
- चतुर्मुखी रुद्राक्ष
- पञ्चमुखी रुद्राक्ष
- षट्मुखी रुद्राक्ष
- सप्तमुखी रुद्राक्ष
- अष्टमुखी रुद्राक्ष
- नवमुखी रुद्राक्ष
- दसमुखी रुद्राक्ष
- एकादशमुखी रुद्राक्ष
- द्वादशमुखी रुद्राक्ष
- त्रयोदशमुखी रुद्राक्ष
- चतुर्दशमुखी रुद्राक्ष
- दुर्लभ रुद्राक्ष
- रुद्राक्ष माला के मनकों में स्थित गयत्री-स्वरूप
- रुद्राक्ष दानों में स्थित रोग निवारक शक्तियों की तालिका
- कर्मविपाक तालिका
- शिवअष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम
अनुक्रम
विनामूल्य पूर्वावलोकन
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